सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कर्नाटक हिजाब मामला, केस कर्नाटक हाईकोर्ट से ट्रांसफर करने की गुहार

कर्नाटक हिजाब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. इस मामले में SC (Supreme court) में याचिका दाखिल की गई है. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने CJI की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष की जल्द सुनवाई की मांग की है. सिब्बल ने कहा, ‘ ये नौ जजों के संविधान पीठ का मामला है.सुप्रीम कोर्ट को मामले की जल्द सुनवाई करनी चाहिए.चाहे कोई आदेश जारी ना हो लेकिन जल्द सुनवाई के लिए मामले को लिस्ट करें. स्कूल, कॉलेज बंद हैं. हाईकोर्ट को भी सुनवाई करने दें.’

इस पर प्रधान न्‍यायाधीश (CJI) एनवी रमना ने कहा कि वो देखेंगे. कर्नाटक हाईकोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा है.आज भी सुनवाई होनी है.पहले हाईकोर्ट को फैसला करने दें.अभी इस मामले में कोई जल्दी नहीं है. अगर हम मामले की सुनवाई करेंगे तो हाईकोर्ट सुनवाई नहीं करेगा. हिजाब मामले में फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने कोई तारीख देने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी हम मामले में क्यों कूदें.पहले हाईकोर्ट को फैसला करने दें.उधर, उडुपी की छात्रा फातिमा बुशरा ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, इसमें कर्नाटक सरकार के 5 फरवरी के आदेश को गैरकानूनी और समानता, स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के विपरीत बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है.हिजाब को लेकर विवाद के बीच कर्नाटक सरकार ने अपने आदेश में शैक्षणिक संस्थानों से पोशाक संबंधी मौजूदा नियमों का पालन करने को कहा है, जब तक कि हाईकोर्ट इस संबंध में कोई आदेश नहीं दे देता.

बता दें, हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई हुई थी लेकिन हाईकोर्ट ने इस केस को बड़ी बेंच में सुने जाने की सिफारिश की .बड़ी बेंच अब इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या स्कूल-कॉलेज किसी मुस्लिम लड़की को हिजाब पहनकर आने से रोक सकते हैं या नहीं. इसको लेकर संवैधानिक और मौलिक अधिकारों से जुड़े तमाम मुद्दों पर भी हाईकोर्ट की बड़ी खंडपीठ विचार करेगी. कक्षाओं में हिजाब को लेकर प्रतिबंध के खिलाफ कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने कहा था कि पर्सनल लॉ के कुछ पहलुओं के मद्देनजर ये मामले बुनियादी महत्व के कुछ संवैधानिक प्रश्नों को उठाते हैं.न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा था, ‘‘ऐसे मुद्दे जिन पर बहस हुई और महत्वपूर्ण सवालों की व्यापकता को देखते हुए अदालत का विचार है कि मुख्य न्यायाधीश को यह तय करना चाहिए कि क्या इस विषय में एक बड़ी पीठ का गठन किया जा सकता है.”

Khushi Sonker

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