उत्तर प्रदेश

दुनियाभर में भारत की इमेज धूमिल होने के तीन कारण संघी, मुसंघी और मीडिया -रियाजुल्ला खान

ईशनिंदा, मंदिर, मस्जिद, इतिहास सुधार और हिंसक घटनाएं जो लोग इतनी तबाही के बाद भी नशे में चूर हैं, उनके लिए हम तो यही कहना चाहेंगे कि अपनी अक्ल पर विश्वास करो, आंखें खोलकर सामने बाजार-बैंक-खेत-खलिहान में मच रही तबाही देखो।मोदी जी के आने के बाद सरकारी बैंकों को प्रतिदिन करोड़ों रूपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है, हरेक व्यापारी परेशान है, नौकरियां एक सिरे से गायब हैं, सिर्फ भाड़े के टट्टुओं की टोलियां साइबर से लेकर शहरों तक साम्प्रदायिक उन्माद और असत्य के प्रचार में लगी हैं, ये प्रचारक पेड कर्मचारी हैं, इनके भरोसे देश को लूटा जा रहा है, जनता को ठगा जा रहा है, इनसे देश का विकास संभव नहीं है। जजों से लेकर आम जनता तक सब परेशान हैं।

बहुत जल्द ही भारत को पाषाणयुग में ले जाएंगे मोदी जी

टीवी की कैद में सारे देश को बंदी बना लिया गया हैं, पूरे परिवेश को बंदी बना लिया है, इसके कारण आप सच्चाई देख नहीं पा रहे। स्थिति की भयावहता का अनुमान इससे ही लगा सकते हैं कि रेल का सामान्य भाड़ा कई गुना बढ़ाकर वसूला जा रहा है लेकिन आम लोग प्रतिवाद नहीं कर रहे हैं, यदि आप लोगों ने अक्ल के दरवाजे नहीं खोले तो पीएम, जहां आदमी नंग-धडंग रहेगा, उसके पास न तो कोई काम होगा और न उसकी कोई आमदनी होगी उस युग में ले जाएंगे भारत को नंग-धड़ंग होने से बचाने के लिए जरूरी है मोदी जी की नीतियों को हर पल नंगा करो, जनता को जगाओ।

आरएसएस के साइबर लेखकों को विकास का इन दिनों कोई विषय नजर नहीं आ रहा, वे कृषि पर नहीं बोल रहे, किसानों की आत्महत्याओं पर नहीं बोल रहे, वे देश की अर्थव्यवस्था में जो नकारात्मक लक्षण सामने आर्थिक अखबारों को नजर आ रहे हैं उन पर नहीं बोल रहे, वे बोलने के लिए कोई निरीह पशु या अप्रासंगिक विषय चुन रहे हैं, इससे एक बात साफ हो गयी है कि आरएसएस के कलमघिस्सुओं की देश के किसी गंभीर समस्या में कोई रूचि नहीं है। कम से कम आठ साल में इतना ही कर देते कि कांग्रेस ने जिन नीतियों को बनाया था उनको नष्ट करके नई नीतियां बनाकर लागू करते। लेकिन मोदी सरकार एप बनाने, वेबसाइड लॉच करने, विदेश यात्रा करने, विज्ञापन देने, मीडिया की स्वतंत्रता का गला घोंटने, चंदा वसूली और चुनाव जीतने में व्यस्त रहे।70 साल के विकास की महानतम उपलब्धि है आरएसएस जैसे संगठन की प्रतिगामी और साम्प्रदायिक विचारधारा के लोगों का हर क्षेत्र में वर्चस्व।

पत्रकारों का एक बड़ा समूह इस समय जिस तरह की हरकतें कर रहा है उससे भारत की इमेज को बट्टा लगा है। खबरों के चयन को लेकर जिस तरह की अराजकता व्याप्त है उससे यह भी पता चलता है कि पत्रकारों को खबरों के चयन का बोध ही नहीं है

पत्रकार के अंदर से अगर खबर का बोध ही खत्म हो जाए तो वह खबरों के नाम पर नरक इकट्ठा कर सकता है। फिलहाल भारतीय मीडिया में यही हो रहा है।किसी गधे से बेहतर नहीं टीवी पत्रकारों की अवस्था । क्या हमारे पत्रकार और खासकर टीवी पत्रकार व्यवहार में वही आचरण कर रहे हैं जैसा वे पढ़कर आए थे, क्या उनको खबरें पढ़ाते समय यह नहीं बताया गया कि खबरों के भी स्तर होते हैं। स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय या विश्व स्तर की खबर में वे कोई अंतर नहीं करते, विश्वास न हो तो विदेशी चैनल देखें और सीखें।ऐसा नहीं है अमेरिका में बलात्कार नहीं होते, चोरी-डकैती की घटनाएं नहीं होतीं लेकिन वहां टीवी में इसका स्तरीकरण, क्षेत्रीकरण साफ दिखेगा।

मीडिया यह नहीं जानता कि उसे कब, कहां और किसको सम्बोधित करना है या क्या खबरें देनी हैं। मोदीभक्ति को इतने फूहड़ ढ़ंग से अंजाम दिया जा रहा है कि उसने भोंपू को भी शर्मिंदा कर दिया है।आज सारी दुनिया में भारत की जो खराब इमेज बनी है उसमें मोदी सरकार के अलावा मीडिया कवरेज की सबसे बड़ी भूमिका है।संक्षेप में, असभ्य भारत की दुनिया में इमेज बनाने वाले दो प्रमुख तत्व हैं पहला भाजपाई हिंदुत्व और आरएसएस का प्रचार और दूसरा है कारपोरेट मीडिया ।मोदी निर्मित भारत में सबसे बड़ा संकट धर्मनिरपेक्षता के लिए पैदा हुआ है। बहुत सारे दलों का भारत में धर्मनिरपेक्षता के प्रति अटूट संबंध है। इस संबंध में दो नजरिए मिलते हैं। एक ओर वे दल हैं जो धर्मनिरपेक्षता और अहिंसा के अंतर्संबंध पर बल देते हैं, दूसरी ओर वे दल हैं जो धर्मनिरपेक्षता का हिंसा से संबंध जोड़ते हैं। समग्रता में हिंसा वाले पहलू ने भारत को गहरे प्रभावित किया है। नया पहलू है धर्मनिरपेक्षता के अपराधीकरण के अन्तरसंबंध का।धर्मनिरपेक्ष राजनीति तब ही लोकतंत्र में सकारात्मक भूमिका अदा करती है जब वह नागरिक अधिकारों और उसके नज़रिए से समूचे समाज को परिभाषित करे। नागरिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य के बिना धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता में बहुत बड़ा अंतर नज़र नहीं आता, ख़ासकर अपराधीकरण के प्रसंग में। मौजूदा हिंसा को पहल करके रोकने के लिए कोई दल तैयार नहीं है, उलटे गरम-गरम बयान आ रहे हैं या फिर उपेक्षा करके चुपचाप हिंसा देख रहे हैं। यह मनोदशा अ-लोकतांत्रिक और हिंसक है। हिंसा का जबाव हिंसा नहीं है, हिंसा का जबाव पुलिस भी नहीं है। हिंसा का जवाब है शांति। वह संवाद-सहयोग के बिना स्थापित नहीं हो सकती। लोकतंत्र के ये दोनों महत्वपूर्ण तत्व हैं।जो दल लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कल तक वोट मांग रहे थे वही दल आज मुँह फुलाए, गुस्से में ऑफिस में बैठे हैं या हिंसा में मशगूल हैं।हिंसा को हिंसा या घृणा या निंदा से खत्म नहीं कर सकते। हिंसा को खत्म करने के लिए शांति, सहयोग और संवाद की जरूरत है।

Disclaimer -This is the Author’s point of view. BHN news was not involved in the creation of this content.

Aman Yadav

Aman Yadav covers National, International, Business, and Entertainment Sections. he believes that writing a news article is a different form of writing because news articles present information in a specific way. Hence, he tries to convey all the relevant information in a limited word count and give the facts to the audience concisely.

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