एलएसी विवाद: भारत-चीन के बीच बातचीत को एक साल पूरा, अब तक नहीं सुलझा पूरा मामला

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INDIA-CHINA MILITARY TALKS
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भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर बातचीत को अब एक साल पूरा हो गया है। बीते साल कोरोना महामारी के दौर में पांच मई को पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं के बीच गतिरोध के हालात बने थे। यह 45 साल में पहली बार था कि गतिरोध के दौरान दोनों पक्षों के सैनिक मारे गए थे। पैंगोंग झील क्षेत्र से सैनिकों को पीछे हटाने के मामले में हालांकि सीमित प्रगति हुई है लेकिन टकराव के अन्य बिंदुओं पर भी ऐसे ही कदम उठाने के लिए वार्ता में गतिरोध बना हुआ है।

लद्दाख में भारत और चीन के बीच कुछ सैनिकों की वापसी के बावजूद सीमा पर तनाव अब भी बरकरार है। आला सैन्य कमांडरों के बीच 11 दौर की बातचीत हुई लेकिन पूरी तरह से अब तक समाधान नहीं निकला।

9 अप्रैल को 11वीं कमांडर लेवल की मीटिंग एलएसी पर पूर्वी लद्दाख के चुशूल बीपीएम-हट में करीब 13 घंटे चली थी। दोनों पक्षों ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर डिसइंगेजमेंट से संबंधित शेष बचे मुद्दों के समाधान के लिए  विस्तृत विचार-विमर्श किया था। बैठक के बाद रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि दोनों देश संयुक्त रूप से जमीन पर स्थिरता बनाए रखने, किसी भी नई घटनाओं से बचने और संयुक्त रूप से सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए सहमत हुए हैं।

कुछ इलाकों को लेकर अभी भी विवाद जारी
इसी साल 24 जनवरी को 9वें दौरे की मीटिंग के बाद भारत-चीन दोनों देशों ने पैंगोंग त्सो लेक से सटे इलाकों से डिसइंगेजमेंट कर लिया है, लेकिन अभी भी कुछ विवादित इलाकों में डिसइंगेजमेंट के साथ-साथ पूरी तरह से डि-एस्कलेशन होना बाकी है। इसी मुद्दे पर दोनों देशों के सैन्य कमांडर्स ने बातचीत चल रही है।

11वें दौर की मीटिंग का एजेंडा डिसइंगेजमेंट और डि-एस्कलेशन था यानी दोनों देशों के सैनिक एलएसी से पीछे हट जाएं और सैनिकों की संख्या भी कम कर दी जाए। ये डिसइंगेजमेंट गोगरा, हॉट-स्प्रिंग, डेपसांग प्लेन्स और डेमोचक जैसे विवादित इलाकों में किया जाना है। एक अनुमान के मुताबिक, पूर्वी लद्दाख से सटे 826 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) यानी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल पर दोनों देशों ने करीब 50,000 से 60,000 सैनिकों को अभी भी तैनात किया हुआ है।

हाई अलर्ट पर भारतीय सेना
28 मई को सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा था कि उनके सैनिक हाई अलर्ट पर हैं, क्योंकि पीएलए ने अपने सैनिकों और टैंकों को एलएसी पार डेप्थ एरिया में तैनात करना जारी रखा है. जहां से उन्हें कम समय में आगे के क्षेत्रों में तैनात किया जा सकता था। उत्तरी सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कोर कमांडरों की बैठकों के मिले-जुले परिणाम रहे हैं, क्योंकि वे पैंगोंग त्सो क्षेत्र में डिसइंगेजमेंट पर बातचीत करने में सफल रही थी, लेकिन आगे कोई प्रगति नहीं हुई है।

डीएस हुड्डा ने कहा कि हमने नौवें दौर की सैन्य वार्ता से पहले देखा था, जहां दोनों पक्षों ने पैंगोंग त्सो से अलग होने के तौर-तरीकों पर काम किया था। उन्होंने कहा कि विवाद सुलझाने के लिए दोनों देशों के साथ मिलकर हल करने की आवश्यकता है।

‘डेपसांग संघर्ष को लेकर भी भारत सतर्क’
जनरल एमएम नरवणे ने 28 मई को कहा था कि हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा में भारतीय सेना की गश्त गतिविधि प्रभावित हुईं हैं। वहीं, डेपसांग में पीएलए की तैनाती ने भारतीय सैनिकों की पेट्रोलिंग प्वाइंट्स (PP) 10, 11, 11-A, 12 और 13 तक जाने वाले मार्गों तक पहुंचने में बाधा डाली है। निश्चित रूप से डेपसांग की समस्याएं वर्तमान सीमा गतिरोध से पहले की हैं। अप्रैल 2020 की पूर्व स्थिति को स्थापित करने की एक व्यापक, अधिक व्यापक योजना का केवल पहला चरण है। इसके बाद डी-एस्केलेशन और अंत में बलों का डी-इंडक्शन होगा. उन्होंने कहा था कि वह आगे तक सतर्क रहेंगे।

सीमा पर अब तक का सबसे गंभीर तनाव 
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल कुछ सैनिकों की वापसी के बावजूद चीन-भारत के बीच तनाव बना हुआ है। विवादित सीमा क्षेत्रों में मई 2020 से चीनी सेना की मौजूदगी, दशकों में अब तक की सबसे गंभीर तनावपूर्ण स्थिति है और इसके चलते 1975 के बाद से दोनों देशों के बीच सीमा पर पहली जानलेवा झड़प हुई। फरवरी तक कई दौर की बातचीत के बाद दोनों देशों ने विवादित सीमा के कुछ इलाकों से सेनाओं और सैन्य उपकरणों को हटाया है।

एक साल से कायम है गतिरोध
एलएसी पर एशिया की दो महाशक्तियों के बीच टकराव को पूरा एक साल हो गया है। पिछले साल यानी 5-6 अप्रैल 2020 को ही एलएसी के पैंगोंग-त्सो झील से सटे फिंगर एरिया में दोनों देशों के बीच पहली बार झड़प हुई थी। उसके बाद 15-16 जून को गलवां घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे।