देश में कच्चे तेल का भंडारण बढ़ने से इसका सीधे तौर पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर असर पड़ता है. अगर कच्चे तेल सस्ता होता है तो देश में पेट्रोल डीजल की कीमतें भी कम हो जाती है, जिससे कि आम आदमी को फायदा होता है. वहीं जब क्रूड महंगा होता है तो महंगे डीजल एवं पेट्रोल से आम आदमी की जेब पर असर पड़ता है.
कच्चे तेल सस्ता होने से महंगाई भी कम होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि क्रूड सस्ता होने से पेट्रोल डीजल सस्ता हो जाता है और परिचालन लागत कम होने से वस्तुओं के दाम कम हो जाते हैं.
कच्चे तेल की कीमतों का असर रुपए पर भी पड़ता है. कच्चे तेल सस्ता होने से हमें उसकी खरीद के लिए विदेशों में कम डॉलर का भुगतान करना होता है, यानी हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में ज्यादा कमी नहीं आती है. इस लिहाज से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हो जाता है.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें नीचे चले जाने का लाभ उठाते हुए सरकार ने अप्रैल-मई में 1.67 करोड़ बैरल कच्चे तेल का भंडारण किया था. सरकार ने अप्रैल-मई में कच्चे तेल की कीमतों के दो दशक के निचले स्तर पर चले जाने के दौरान तीन भंडारण सुविधाओं को भर लिया था. इस खरीद से उसे 68.51 करोड़ डॉलर या 5,069 करोड़ रुपये की बचत करने में मदद मिली.
देश में आकस्मिक समय के लिए तीन स्थानों पर भूमिगत तेल भंडारण सुविधा विकसित की गयी है. भारतीय रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार लिमिटेड (आईएसपीआरएल) ने कर्नाटक के मंगलुरू और पद्दूर एवं आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में तीन भूमिगत भंडारण सुविधा विकसित की हैं. इन्हें आपूर्ति और मांग में अंतर आने के दौरान कीमतों को स्थिर रखने के लिए तैयार किया गया है. मंगलुरू की भूमिगत सुविधा की भंडारण क्षमता 15 लाख टन है.