कोरोना वायरस की उत्पत्ति पर डब्ल्यूएचओ ने कहा- चीन को और आंकड़े देने के लिए नहीं कर सकते मजबूर

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क्या कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन में ही हुई, इसे लेकर अब तक कोई ठोस सबूत सामने नहीं आ सका है। हालांकि तमाम की विशेषज्ञ चीन की तरफ ही उंगली उठा रहे हैं। इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वह चीन को मजबूर नहीं कर सकता कि वह वायरस की उत्पत्ति को लेकर और अधिक आंकड़े उपलब्ध कराए। 

डब्ल्यूएचओ ने कहा कि हालांकि वह इस बात पर जोर देता रहेगा कि इस बात की जांच जारी रहनी चाहिए कि आखिर वायरस कहां से आया और इस तरह दुनिया में फैल गया।

अमेरिका भी हुआ सख्त
चीन से निकल कर दुनिया भर में तबाही मचाने वाले कोरोना वायरस की उत्पति का पता लगाने में जुटा अमेरिका अब ड्रैगन के खिलाफ किसी भी हालत में नरमी बरतने के मूड में नहीं है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कोरोना वायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि कोरोना वायरस के खात्मा करना है और अगर भविष्य में इस तरह की महामारी से बचना है तो इसकी तह तक जाना होगा। उन्होंने कहा कि चीन अब तक उस तरह से जांच नहीं करने दे रहा, जैसी जांच होनी चाहिए थी।

अमेरिकी विदेश मंत्री ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा कि महामारी (कोरोना) की तह तक जाने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि यही एक तरीका है, जिससे हम अगली महामारी से बच सकते हैं या इसे खत्म करने के लिए बेहतर प्रयास कर सकते हैं।

अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने कहा, ‘वायरस को लेकर चीन वैसी पारदर्शिता नहीं बरत रहा और न ही उस तरह की जानकारी दे रहा है, जैसी इसकी जांच के लिए जरूरी है। ब्लिंकेन ने कहा कि बीजिंग अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं को प्रवेश दे और उन्हें हर जरूरी जानकारी भी मुहैया कराए ताकि इस महामारी का दुनिया से खात्मा किया जा सके।

कोरोना वायरस के शुरुआती प्रसार को लेकर तीखी बहस
कोरोना वायरस के शुरुआती प्रसार को लेकर तीखी बहस छिड़ हुई है। पिछले साल तक जहां इसकी उत्पत्ति जानवरों से मानी जा रही थी तो अब बीते कुछ माह से वुहान प्रयोगशाला (लैब) से लीक की जांच की मांग ने जोर पकड़ लिया है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है, महामारी के चमगादड़ों से इंसानों में आने की थ्योरी दुनिया को संतुष्ट नहीं कर पाई है। ऐसे में प्रयोगशाला से प्रसार की गहन पड़ताल होनी चाहिए। इसके लिए उन्होंने कई कारण और तरीके बताए हैं।

1977 में लैब से फैला था एच1एन1
लैब दुर्घटनाएं पहले भी मानव संक्रमण का कारण बन चुकी हैं। 1977 में फैली एच1एन1 फ्लू महामारी इसका बड़ा उदाहरण है, जिसमें सात लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। यही वजह है कि किसी भी वायरस के लैब से निकलने से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता।

आनुवांशिक हेरफेर की गुंजाइश
अब तक आनुवांशिक हेरफेर के प्रमाण तो नहीं मिले हैं लेकिन ऐसे तरीके मौजूद हैं, जिनसे वैज्ञानिक बिना किसी सबूत के वायरल अनुक्रमों को संशोधित कर सकते हैं। इनमें जीनोम को टुकड़ों में काटने के बाद एक साथ जोड़ने का तरीका शामिल है। साथ ही आईएसए प्रोटोकॉल के जरिये भी आपस में जुड़े टुकड़े स्वाभाविक रूप से सजातीय पुनर्संयोजन के माध्यम से कोशिकाओं में एक साथ आ जाते हैं। इसके अंतर्गत दो डीएनए अणु टुकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं।

जानवरों के नमूने रहे निगेटिव
हालांकि आनुवांशिक हेरफेर संभावित लैब लीक का एकमात्र कारण नहीं है। इसके पीछे कुछ और तर्क भी हैं। वायरस के पशुजनित होने को लेकर सालभर से ज्यादा समय तक हुए गहन शोध सफल नहीं रहे। इसके लिए लगभग 30 प्रजातियों के 80 हजार जानवरों के नमूनों में से सभी का जांच परिणाम निगेटिव रहा है।