पाकिस्तान: मानसिक बीमार कैदियों को सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत, मौत की सजा पर लगी रोक

271

पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को मानसिक विकार से ग्रस्त तीन कैदियों की मौत की सजा पर रोक लगा दी। अदालत ने इस आधार पर यह फैसला सुनाया कि अगर दोषी सजा के पीछे का तर्क नहीं समझ सकता तो मौत की सजा ‘न्यायोचित’ नहीं है।

 न्यायाधीश मंजूर अमहद मलिक की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीछ ने यह आदेश पारित किया। अदालत ने यह आदेश मानसिक रूप से रोगी और मौत की सजा पाने वाली कनिजान बीबी, इमदाद अली और गुलाम अब्बास की याचिकाओं पर सुनाया। 

इनमें से कनिजान बीबी 30 साल, इमदाद अली 18 साल और गुलाम अब्बास 14 साल की सजा काट चुके हैं। याचिकाकर्ताओं में मानसिक बीमारी के लक्षण देखे गए हैं। इन्होंने अपनी याचिकाओं में अदालत से मांग की थी कि उनकी सजा में बदलाव किया जाए।

अदालत ने इन याचिकाओं पर वितार करते हुए कनिजान बीबी और इमदाद अली की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। इसके साथ ही अदालत ने निर्देश दिया कि गुलाम अब्बास को लेकर पाकिस्तान के राष्ट्रपति के पास एक ताजा दया याचिका दाखिल की जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि आरोपी को इलाज के लिए जेल से लाहौर स्थित पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ भेजा जाए। हालांकि, पीछ ने यह साफ किया कि कोई भी मानसिक बीमारी मौत की सजा बदलने की वजह नहीं बन सकती है।

आदेश में कहा गया, ‘यह छूट केवल उस मामले में लागू होगी जहां एक मेडिकल बोर्ड, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर शामिल हैं, पूरी तरह से जांच के बाद प्रमाणित करता है कि कैदी की मानसिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह सजा के पीछे का तर्क समझ सके।

इसके साथ ही अदालत ने अधिकारियों को मेंटल हेल्थ संस्थानों में उच्च सुरक्षा वाली फॉरेंसिक मेंटल हेल्थ सुविधा गठित करने का निर्देश दिया है। अदालत ने मानसिक बीमारी को ठीक तरीके से परिभाषित करने के लिए कानून में बदलाव करने की बात भी कही।