वैश्विक स्तर पर बढ़े चीनी के दाम, भारतीय मिलों का 43 लाख टन निर्यात का अनुबंध, घरेलू बाजार में भी बढ़ सकती है कीमतें

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वैश्विक स्तर पर चीनी की बढ़ती कीमतों के बीच भारतीय मिलों ने 43 लाख टन निर्यात का अनुबंध किया है। इस्मा ने बुधवार को बताया कि 30 सितंबर को समाप्त होने वाले वर्तमान चीनी वर्ष में भारतीय मिलों के पास निर्यात से मुनाफा कमाने का बेहतरीन अवसर है। विदेशी बाजारों में चीनी का भाव चार साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया है।

भारतीय चीनी मिल संगठन (इस्मा) ने बताया कि सरकार की ओर से निर्यातकों को 5,833 रुपये प्रति टन की सब्सिडी भी मिलती है। इससे विदेशी बाजारों में चीनी बेचना बड़े मुनाफे का सौदा बन जाता है। वर्तमान चीनी सत्र के लिए सरकार ने 60 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा तय किया है, जिस पर मिलों को सब्सिडी दी जाएगी।

अभी तक मिलों ने विदेशी बाजारों से 43 लाख टन चीनी निर्यात का करार किया है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है, लेकिन थाईलैंड में इस साल गन्ने की पैदावार प्रभावित होने से विदेशी खरीदार भारतीय मिलों से करार कर रहे हैं। एजेंसी

भारतीय चीनी की सबसे ज्यादा मांग इंडोनेशिया, दुबई, अफगानिस्तान, श्रीलंका और अफ्रीकी देशों में रहती है। दिसंबर से करार मिलने के बाद अभी तक 22 लाख टन का निर्यात किया जा चुका है। डीलर का कहना है कि निर्यात में सबसे बड़ी बाधा कंटेनर की कमी और मालभाड़े में बढ़ोतरी है।

भारतीय मिलों ने चालू पेराई सत्र में अभी तक 2.57 करोड़ टन चीनी का उत्पादन किया है, जो पिछले साल से 20 फीसदी ज्यादा है। इस साल 502 मिलों ने पेराई शुरू की थी, जिसमें से 171 मिलें मार्च के मध्य तक बंद हो चुकी हैं।

इस्मा ने बताया कि निर्यात अनुबंध से चीनी मिलों को दोहरा लाभ कमाने का मौका मिलेगा। विदेशी बाजारों में चीनी भेजने से स्थानीय भंडार पर दबाव कम होगा और घरेलू बाजार में भी चीनी के दाम सुधरेंगे।

चीनी की बिक्री प्रभावित होने और घरेलू बाजार में कीमतें गिरने से चीनी मिलों को वाजिब दाम नहीं मिल पाता, जिससे गन्ना किसानों को भी समय पर भुगतान में मुश्किल आती है। संगठन ने बताया कि 31 दिसंबर, 2020 को सरकार ने चीनी निर्यात का कोटा तय किया था और महज ढाई महीने में 43 लाख टन का ऑर्डर मिलना बड़ी उपलब्धि है।