परिचय:
फिल्म "कहां शुरू कहां खतम" का इंतजार खासतौर पर इसलिए किया जा रहा था क्योंकि इसमें ध्वनि भानुशाली, जो कि पहले से एक सफल गायिका हैं, ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की है। इस फिल्म से लोगों की उम्मीदें इसलिए भी ज्यादा थीं क्योंकि यह फिल्म बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे सामाजिक मुद्दे पर आधारित है। फिल्म की कहानी हरियाणा की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जो भारतीय समाज की कुछ सच्चाइयों को उजागर करती है।
Movie Review: Kahaan Shuru Kahaan Khatam
Cast: Dhvani Bhanushali, Aashim Gulati, Supriya Pilgaonkar, Rajesh Sharma, Akhilendra Mishra, Vikram Kochhar, Rakesh Bedi, and Gaurav Manwani
Writers: Laxman Utekar and Rishi Virmani
Director: Saurabh Dasgupta
Producers: Laxman Utekar and Vinod Bhanushali
Rating: 2/5
कहानी का सार:
फिल्म की कहानी एक पारंपरिक खानदानी परिवार की बेटी 'ऐन' के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी शादी के दिन घर से भाग जाती है। कहानी तब शुरू होती है जब ऐन अपने परिवार और समाज की पुरानी परंपराओं और मानसिकता से जूझ रही होती है। ऐन को अपना जीवन अपने तरीके से जीने की इच्छा होती है, लेकिन समाज की पुरानी सोच उसे बांधने की कोशिश करती है। इसी शादी में एक और व्यक्ति है जिसे बिना बुलाए शादियों में जाकर मस्ती करने का शौक है। यह व्यक्ति ऐन के साथ भाग जाता है, और दोनों एक रोमांचक सफर पर निकल पड़ते हैं। इस सफर के दौरान दोनों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसमें ऐन के दो मजबूत और गुस्सैल भाई भी शामिल हैं, जो उसे वापस लाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
फिल्म में ऐन का संघर्ष केवल समाज के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह पीढ़ियों के बीच की सोच के अंतर को भी दिखाता है। फिल्म में घूंघट में रहने वाली महिलाएं और उनकी सोच का चित्रण किया गया है। साथ ही, फिल्म में समलैंगिक रिश्तों का जिक्र भी किया गया है, जो कहानी को एक नया मोड़ देता है।
फिल्म की विशेषताएं:
फिल्म की सबसे खास बात इसकी कहानी है, जो समाज में मौजूद कई मुद्दों पर प्रकाश डालती है। खासकर महिलाओं के अधिकारों, उनकी इच्छाओं और समाज द्वारा उन पर थोपे गए नियमों के खिलाफ उनकी लड़ाई को फिल्म में बखूबी दिखाया गया है। कहानी का आधार मजबूत है, लेकिन पटकथा और संवादों में कमी नजर आती है। फिल्म की कहानी दिलचस्प है, लेकिन इसमें कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जो दर्शकों को बोर कर सकते हैं।
फिल्म की शूटिंग हरियाणा और बरसाना जैसी जगहों पर की गई है, जो फिल्म को वास्तविकता के करीब ले जाती हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि और पारंपरिक भारतीय समाज का चित्रण फिल्म को और ज्यादा सजीव बनाता है। फिल्म की कहानी में घूंघट वाली महिलाएं, हाथ में लट्ठ और पुरुषों के पास हर वक्त पिस्तौल जैसी चीजें फिल्म की ग्रामीण पृष्ठभूमि को और ज्यादा वास्तविक बनाती हैं।
फिल्म के संवाद और निर्देशन:
फिल्म के संवादों में वो पकड़ नहीं है, जो दर्शकों को बांध कर रख सके। 30 साल पहले की फिल्मों जैसे संवादों की भरमार इस फिल्म में देखने को मिलती है। फिल्म की पटकथा और संवाद कहीं-कहीं इतने कमजोर हैं कि दर्शक भी यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि वो क्या देखने आए थे। कई बार ऐसे डायलॉग होते हैं जिनपर हंसी भी नहीं आती।
फिल्म का निर्देशन सौरभ दासगुप्ता ने किया है, लेकिन फिल्म में एक भी सीन ऐसा नहीं है जो दर्शकों के दिल और दिमाग पर अपनी छाप छोड़ सके। निर्देशक ने फिल्म को वास्तविकता से जोड़ने की कोशिश तो की है, लेकिन कहीं न कहीं वे इसमें पूरी तरह सफल नहीं हो पाए। कई सीन ऐसे हैं जिन्हें और बेहतर तरीके से शूट किया जा सकता था।
ध्वनि भानुशाली का अभिनय:
ध्वनि भानुशाली ने इस फिल्म से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की है। उन्हें अब तक लोग उनकी गायकी के लिए जानते थे, लेकिन इस फिल्म में उन्होंने बतौर अभिनेत्री खुद को साबित करने की पूरी कोशिश की है। ध्वनि का किरदार ऐन का है, जो अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक सशक्त महिला है। ध्वनि ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है, लेकिन कहीं-कहीं उनके अभिनय में नयापन और एक्सप्रेशन की कमी महसूस होती है।
हालांकि, यह उनकी पहली फिल्म है और किसी भी अभिनेता या अभिनेत्री के लिए यह जरूरी होता है कि वह अपनी गलतियों से सीखे और अगले प्रोजेक्ट में बेहतर प्रदर्शन करे। ध्वनि की यह कोशिश सराहनीय है, और यह उम्मीद की जा सकती है कि वह आने वाले समय में और भी बेहतर अभिनय करेंगी।
बाकी कलाकारों का प्रदर्शन:
फिल्म में आशिम गुलाटी ने ऐन के साथ भागने वाले शख्स का किरदार निभाया है। उनका अभिनय ठीक-ठाक है, लेकिन उनके किरदार में कुछ खास नयापन नहीं है। सुप्रिया पिलगांवकर और राजेश शर्मा जैसे अनुभवी कलाकारों का प्रदर्शन भी औसत ही कहा जा सकता है। फिल्म में राकेश बेदी का रोल थोड़ा हास्यपूर्ण है, लेकिन उनके डायलॉग्स और अभिनय में वह दम नहीं है, जो दर्शकों को जोर से हंसने पर मजबूर कर सके।
संगीत और गाने:
फिल्म में गानों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन गाने कब शुरू होते हैं और कब खत्म, यह समझ पाना थोड़ा मुश्किल है। फिल्म के गाने "बाबू की बेबी हूं मैं" को सुनिधि चौहान ने गाया है और इसमें धनश्री वर्मा का डांस काफी अच्छा है। यह गाना फिल्म का सबसे आकर्षक हिस्सा है और दर्शकों को थोड़ी देर के लिए बांध कर रखता है। लेकिन गाने खत्म होने के बाद फिर से फिल्म की कहानी धीमी हो जाती है।
तकनीकी पक्ष:
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग औसत है। फिल्म के कुछ दृश्य बहुत अच्छे ढंग से शूट किए गए हैं, लेकिन अधिकतर सीन में कैमरा वर्क और एडिटिंग में कमी नजर आती है। फिल्म की लंबाई भी थोड़ी ज्यादा महसूस होती है, जिससे दर्शक बोर हो सकते हैं।
फिल्म का संदेश:
"कहां शुरू कहां खतम" एक महिला प्रधान फिल्म है और इसमें समाज में महिलाओं की स्थिति, उनके अधिकार और उनके संघर्ष को दिखाया गया है। फिल्म का संदेश साफ है कि महिलाओं को भी अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का हक होना चाहिए और समाज को उनकी इच्छाओं का सम्मान करना चाहिए। फिल्म में महिलाओं के लिए एक सशक्त संदेश है, लेकिन इसे और प्रभावी तरीके से पेश किया जा सकता था। फिल्म "कहां शुरू कहां खतम" एक अच्छी कहानी पर आधारित है, लेकिन इसे जिस तरह से पेश किया गया है, वह दर्शकों को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पाती। ध्वनि भानुशाली का अभिनय सराहनीय है, लेकिन फिल्म की कमजोर पटकथा और निर्देशन इसे खास नहीं बना पाते। फिल्म को एक बार देखा जा सकता है, लेकिन यह उन फिल्मों में से नहीं है, जो आपके दिल और दिमाग पर लंबे समय तक छाप छोड़ जाए।
रेटिंग: 2/5