6 हज़ार करोड़ रूपए का स्कूली यूनिफॉर्म बिजनेस हुआ ठप

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    नर्सरी क्लास से लेकर 12वीं क्लास तक में पढ़ने वाले बच्चों की यूनिफॉर्म बाज़ार में तैयार मिल जाती है. बच्चा किसी भी उम्र और स्कूल का हो, तैयार यूनिफॉर्म बाज़ार में मौजूद है. जानकारों की मानें तो देशभर में अकेले स्कूली यूनिफॉर्म का कारोबार 6000 करोड़ रुपये का है. लेकिन कोरोना की मार से यह कारोबार भी अछूता नहीं है. जब स्कूल बंद हैं और बच्चे जा नहीं रहे हैं तो फिर कैसी यूनिफॉर्म. गर्मियों के हिसाब से बिकने वाली यूनिफॉर्म को तैयार करने का मौका तक नहीं मिला. सर्दियों में कोट और वूलन पैंट सेल करने का मौका मिलेगा इसके भी आसार कम ही नज़र आ रहे हैं.

    CBSE के स्कूलों में ही पढ़ते हैं करीब 2 करोड़ बच्चे-बच्चों के लिए किताब छापने वाली एनसीईआरटी और सीबीएसई की मानें तो बोर्ड से मान्यता प्राप्त स्कूल-कॉलेजों में 2 करोड़ से ज़्यादा बच्चे पढ़ते हैं. एक आंकड़े के मुताबिक 1.5 करोड़ बच्चे क्लास एक से आठ तक में पढ़ते हैं. वहीं क्लास 9 और 11 में 30 लाख, हाईस्कूल में 17 लाख और इंटर में 12 लाख बच्चे पढ़ते हैं. नर्सरी और केजी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या अभी अलग है. अभी इसमे दूसरे बोर्ड में पढ़ने वाले उन बच्चों की संख्या भी नहीं जोड़ी गई है जो बाज़ार से तैयार यूनिफॉर्म खरीदते हैं.

    स्कूल यूनिफॉर्म बिजनेस के बारे में जानिए-उत्तर भारत के कई राज्यों में तैयार यूनिफॉर्म की सप्लाई देने वाले यूनिफॉर्म कारोबारी राजेश का कहना है, क्लास एक से आठ में पढ़ने वाला बच्चा गर्मियों के सीजन में एवरेज 2 हज़ार रुपये की यूनिफॉर्म खरीदता है. इस लिहाज से इस ग्रुप में 4 हज़ार करोड़ रुपये की यूनिफॉर्म बिक जाती है. वहीं नर्सरी से केजी क्लास के बच्चों की संख्या क्लास एक से आठ वालों की 10 फीसद होती है. मतलब 400 करोड़ का कारोबार यह हुआ. वहीं क्लास 9 से 12वीं तक के सभी बच्चे हर साल यूनिफॉर्म नहीं खरीदते हैं. अनुमान के मुताबिक 20 से 25 फीसदी ही यूनिफॉर्म खरीदते हैं.

    यूपी के हाथरस से उत्तर भारत के कई राज्य और हरियाणा से बिहार, महाराष्ट्रा और दूसरे राज्यों में यूनिफॉर्म सप्लाई होती है. रोहतक में बड़े स्तर पर यूनिफॉर्म सिलने के कार्य से तीन इंडस्ट्री जुड़ी हुई हैं. यूनिफॉर्म सिलने के उद्योग से जुड़े उद्यमियों का कहना है कि स्कूलों से फुल यूनिफॉर्म के आर्डर दिसंबर में ही ले लिए जाते हैं. इसके बाद पंजाब के लुधियाना और दिल्ली से रॉ मैटेरियल मंगाते हैं. एडवांस में ही पूरा पैसा देना होता है. स्कूलों में 15 मार्च के बाद यूनिफॉर्म डिलीवरी का कार्य शुरू होता था. एक सीजन में एक यूनिट करीब सवा से डेढ़ लाख तक यूनिफॉर्म तैयार करती थी. इस बार रॉ मैटेरियल फैक्टरी में ही रखा रह गया. यूनिफॉर्म के आर्डर आए ही नहीं. तैयार यूनिफॉर्म तक यूं ही फैक्टरी में पड़ी हैं. अब यह स्कूल यूनिफॉर्म हैं तो खुले बाज़ार में भी नहीं बिक सकती हैं.