अगर आपके परिवार में कोई कोविड-19 से संक्रमित हो जाता है तो आप क्या करेंगे? क्या आप मरीज को अस्पताल में भर्ती करवाएंगे? या आप किसी डॉक्टर से संपर्क करेंगे? 28 सितंबर को एक व्यक्ति को कोरोना वायरस से संक्रमण का लक्षण दिखने पर उसकी जांच कराई गई, जिसके बाद महाराष्ट्र के भंडारा जिले के लखंडूर का यह व्यक्ति कोरोना से संक्रमित पाया गया. लेकिन बाद में उसकी मौत हो गई और पत्नी पर लापरवाही का आरोप लगाकर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.
व्यक्ति के कोरोना पॉजिटिव मिलने के बाद जिला प्रशासन ने परिवार से कहा कि वो उस व्यक्ति को भंडारा के अस्पताल में भर्ती करा दे. इसको नहीं मानते हुए मरीज़ की पत्नी अपने पति को सीधे घर ले गई. पर घर जाने के बाद इस व्यक्ति की इलाज के अभाव में मौत हो गई. तहसील के चिकित्साधीक्षक ने इसकी शिकायत की और पत्नी के खिलाफ अब महामारी बीमारी अधिनियम, 1897 की धारा 188 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है. व्यक्ति की पत्नी पर आरोप है कि उसने अपने कोरोना पॉजिटिव पति के स्वास्थ्य के साथ लापरवाही बरती है. देश में अपने तरह का यह पहला मामला है जब कोविड-19 के किसी मरीज के रिश्तेदार को इस बीमारी की वजह से हुई उसकी मौत के लिए जिम्मेदार मानते हुए उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया हो.
पावनी के सब-डिविजनल ऑफ़िसर अधिकारी अश्विनी शेंडगे ने बताया कि पत्नी के खिलाफ शिकायत डॉक्टर के कहने पर दर्ज की गई है. डॉक्टर ने शिकायत की है कि पत्नी ने कोविड-19 के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है. लखंडूर की यह घटना इस बात का उदाहरण है कि अगर आप नियम को तोड़ेंगे तो आपको सजा दी जाएगी. केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर सुझाव जारी किए हैं ताकि कोविड-19 का मुक़ाबला किया जा सके. पर यह भी सच है कि लोग इसका उल्लंघन करते रहे हैं.
अगर कोई व्यक्ति लॉकडाउन का उल्लंघन करता है तो उसके ख़िलाफ़ महामारी बीमारी अधिनियम, 1897 के तहत आईपीसी, 1860 की धारा 188 के तहत क़ानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
महामारी बीमारी अधिनियम, 1897 की धारा 3 में किसी सरकारी अधिकारी द्वारा जारी नियमों और आदेशों का उल्लंघन करने पर जुर्माने का प्रावधान है.
किसी सरकारी अधिकारी द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन होने पर, अगर यह उल्लंघन क़ानूनी रूप से नियुक्त व्यक्तियों के कामकाज में रुकावट पैदा करता है, उसको कष्ट या नुक़सान पहुंचाता है.
सजा- एक माह की साधारण क़ैद या ₹200 का जुर्माना या दोनों.
अगर इस तरह के किसी आदेश के उल्लंघन से किसी व्यक्ति की जान, स्वास्थ्य या सुरक्षा को नुक़सान पहुंचता है तो 6 महीने की साधारण क़ैद या ₹1000 का जुर्माना या दोनों सज़ा.
सीआरपीसी, 1973 के पहले अनुच्छेद के अनुसार दोनों ही अपराध संज्ञेय है, इसमें ज़मानत की अनुमति है और इसकी सुनवाई किसी मजिस्ट्रेट से हो सकती है.